इंसान बदल जाएगा
इंसान बदल जाएगा सोचा कभी न था।
ऐसा समय भी आएगा सोचा कभी न था।
जिस शहर की हद पंजतीर्थी से गुमट थी,
हर सिम्त फैल जाएगा सोचा कभी न था।
होते थे बंद पहले भी, लगती थी दफ़ा भी,
पर कर्फ़्यू लग जाएगा सोचा कभी न था।
है मंदिरों के शहर में शैतान का डेरा,
हर घर में तमस छाएगा सोचा कभी न था।
चाँदी के ठीकरों के लिए अपनी बहू को,
ज़िंदा कोई जलाएगा सोचा कभी न था।
टी.वी. के एंटेना में ठाकुरों के व्रत के दिन,
मांझा मेरा फँस जाएगा सोचा कभी न था।
रातों को लाऊड-स्पीकरों पे बेसुरा कोई,
डिस्को भजन सुनाएगा सोचा कभी न था।
मुन्ना मेरा लादे हुए काँधों पे किताबें,
पढ़ने के लिए जाएगा सोचा कभी न था।
कल नाक पोंछता था जो अपनी कमीज़ से,
जीना हमें सिखाएगा सोचा कभी न था।
ट्रैफ़िक की रेल-पेल में , लोगों की भीड़
में,
चेहरा मेरा खो जाएगा सोचा कभी न था।
24 दिसंबर 2004
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