सब का
सब कुछ
सब का सब कुछ अगर अच्छा होता
फिर तो हर आदमी ख़ुदा होता।
साथ मेरे ज़मीर है वरना
संग मेरे भी क़ाफ़िला होता।
सोना कुंदन भला कैसे बनता
आग में गर न वो तपा होता।
दर्द मेरा वो समझता शायद
झुग्गियों में अगर रहा होता।
पूछ लेता अगर कोई हमसे
हाले-दिल हमने भी कहा होता।
बाद मुद्दत के न मिलता वो अगर,
ज़ख़्म क्यों फिर मेरा हरा होता।
9 मार्च 2007
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