बादलों तुम आ गए फिर
बादलो, तुम आ गए फिर।
घाव उर के पुर गए थे,
फूट नव अंकुर गए थे,
लाए पुरवाई के झोंके, दर्द सोये जगा गए फिर।
बादलो, तुम आ गए फिर।
स्नेह-धन संचित किया थ,
नीड़ नव निर्मित किया था,
गृह-प्रवेश अब लगा था होने कि बिजली गिरा गए फिर।
बादलों, तुम आ गए फिर।
राख धरती फिर फलेगी,
ज्योति नव फिर से जलेगी,
शेष मैं तो नहीं तुम सर्वस्व यद्यपि जला गए फिर।
बादलों, तुम आ गए फिर।
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