मिट्टी उड़ती है
मिट्टी उड़ती है गली-गली।
यारों, ये कैसी हवा चली।
कुम्हलाया है हर फूल यहाँ,
और मुरझाई है कली-कली।
तुम वाहेगुरु, हम राम कृष्ण,
वो बोल रहे हैं अली-अली।
बस्ती में फिर से मौत बिकी,
देखो, देखो बंदूक चली।
जनता कम संगीनें ज़्यादा,
नेता जी की टोली निकली।
ये किसके सपनों का भारत,
जिसमें ज़िंदों की चिता जली।
है देश जवानी में ऐसा,
क्या होगा फिर जब उम्र ढली।
बिगड़ी सब बात बना दे जो,
है संत कोई, है कोई वली।
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