मन में छाया घोर अँधेरा
मन में छाया घोर अँधेरा।
कौन है अपना कौन पराया,
साथ न देता अपना साया,
ज्योति-पुँज कोई न दीखता ऐसा डाला तम ने डेरा।
मन में छाया घोर अँधेरा।
स्वप्न-लोक भी मुझसे छूटा,
स्वजनों ने ही मुझको लूटा,
आशा-दीप लगा बुझने अब मन को निराशा ने है घेरा।
मन में छाया घोर अँधेरा।
सूझे न कोई भी मंज़िल,
कैसे पाऊँगा तुमसे मिल,
भटक गया हूँ अपने लक्ष्य से कहीं खो गया रस्ता मेरा।
मन में छाया घोर अँधेरा।
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