हवाओं में
हवाओं में ये कैसी सनसनी है।
नई सरकार लगता है बनी है।
नहीं कोई शिकन माथे पर उनके,
यहाँ तो जान पर भी आ बनी है।
ग़ज़ब है वो गिराने में लगे हैं,
इमारत जो अभी आधी बनी है।
हमें झुलसा रही है धूप लेकिन,
वो कहते जा रहे हैं चाँदनी है।
उजाड़ेगी अभी घर और कितने,
न जाने ये घटा कितनी घनी है।
ये अंधी दौड़ है अंधा सफ़र है,
चलो ढूँढें कहाँ गुम रोशनी है।
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