आशा-दीप
आशा के दीप न बुझ पाए।
मारुत ने पकड़ा वेग प्रबल,
चमकी दामिनि, गरजे बादल,
कितने आँधी-तूफ़ान चले, कितने ही झंझावत आए।
आशा के दीप न बुझ पाए।
मैं अपनी राहों से भटका,
तम ने काँटों में जा पटका,
पर प्रतिपल मेरे मार्ग मुझे इनकी लौ ने हैं दिखलाए।
आशा के दीप न बुझ पाए।
संगी-साथी हो गए विमुख,
आधार गए जीवन के सुख,
पर सारी जगती भी मिल कर मुझको विचलित न कर पाए।
आशा के दीप न बुझ पाए।
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