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अनुभूति में संजय ग्रोवर की रचनाएँ

नई ग़ज़लें--
जुबां तक बात
झूठ पहनकर
वाह रे वाह
सूरज

अंजुमन में
असलियत के साथ
आज मुझे
आ जाएँगे
इनको बुरा लगा
उसको मैं अच्छा लगता था
उसे अपने दिल में
क्यों करते हैं मेहनत
किस्सा नहीं हू
कोई बात हुई
ग़ज़लों में रंग
जब भी लोगों से मिलता हूँ
जो गया
डर में था
तितलियाँ
तीर छूटा
तुम देखना
तौबा तौबा
दर्द को इतना जिया
दासी बना के मारा
दिन हैं क्या बदलाव के
पागलों की इस कदर
बह गया मैं
बाबा
बोलता बिलकुल नहीं था
भेद क्या बाकी बचा है
मोहरा अफवाहें फैलाकर
मौत की वीरानियों में
मंज़िलों की खोज में
यह जुदा इक मसअला है
रोज़ का उसका
लड़केवाले लड़कीवाले
लोग कैसे ज़मीं पे
सच कहता हूँ
सोचना
हो गए सब कायदे

महिला दिवस पर विशेष
स्त्री थी कि हँस रही थी
हमारी किताबों में हमारी औरतें

 

वाह रे वाह

आन को दें ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह
वहशी को इंसान पे तरजीह, वाह रे वाह

मात्रा मोड़ के, कायदे तोड़ के, बोले गुरजी
दीजो बहर को ज्ञान पे तरजीह, वाह रे वाह

ख़ुद तो ‘सुबहू’, ‘ईमां’, ‘सामां’ लिखके खिसके
‘नादां’ को ’नादान’ पे तरजीह, वाह रे वाह

चार छूट जब तुमने ली, दो हम क्यूँ ना लें !?
गुज़रे को उन्वान पे तरजीह, वाह रे वाह

संस्कृत बोलो, फ़ारसी बोलो, ख़ुश भी हो लो
मुश्किल को आसान पे तरजीह, वाह रे वाह

अढ़सठ तमग़े, साठ डिग्रियां, बातें थुलथुल
मैल को जैसे कान पे तरजीह, वाह रे वाह

अकादमिक बाड़े में अदब के साथ कबाड़े-
रट्टू को गुनवान पे तरजीह, वाह रे वाह

दुधमुही मूरत, मीठा साग़र, अफ़ीमी सीरत
सूरत को विज्ञान पे तरजीह, वाह रे वाह

सूरत-मूरत, छबियां-डिबियां, मिलना-जुलना
ज़ाहिर को ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह

गुरजी नुक्ते के क़ायल और मैं गुरजी का
सो नुक्ताचीं तान के तरजीह, वाह रे वाह

२० सितंबर २०१०



 

 

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