ग़ज़लों में रंग
डूबता हूँ न पार उतरता हूँ
आप पर ऐतबार करता हूँ
ग़ैर की बेरुख़ी कबूल मुझे
दोस्तों की दया से डरता हूँ
अपना ही सामना नहीं होता
जब भी खुद से सवाल करता हूँ
करके सब जोड़-भाग वो बोला-
मैं तो बस तुमसे प्यार करता हूँ
जब भी लगती है ज़िंदगी बेरंग
यों ही ग़ज़लों में रंग भरता हूँ
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