स्त्री थी कि हँस रही थी
और स्त्री थी कि हँस रही थी
वे ज़रा हैरान हुए कि
उनकी उपस्थिति में भी
अब वे हँसे उसकी हँसी पर
फिर ठिठके
क्यों कि स्त्री थी कि हँस रही थी
अब वे हकबकाए
फिर घूरा उन्होंने ज़ोर से
मगर स्त्री फिर भी हँस रही थी
अब वे हमके, थमके, भभके
अंतत: लपके
कि कुछ कर ही डालेंगे इसका
मगर वह और तेज़ हँसी
अब वे ढूँढ़ा किए यहाँ-वहाँ वो ज़माना कि
जब उनके हँसने से वह
घबरा जाती थी, लाल हो उठती थी,
पल्लू सम्हालती थी,
आख़िरकार रो ही पड़ती थी
मगर नहीं मिला उन्हें कहीं कुछ
और स्त्री थी कि हँस रही थी
9 मार्च 2005
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