कोई बात हुई
दूर से बात बनाना ये कोई बात हुई
शहर को छोड़ के जाना ये कोई बात हुई
सब अपने दर्द सँभाले कि दुख तुम्हारे सुनें
हर समय ज़ख़्म दिखाना ये कोई बात हुई
निकल के घर से अपनी आग हर तरफ़ बाँटों
यों अपने दिल को जलाना ये कोई बात हुई
हमे है यार की चाहत न तुम मसीहा बनो
सभी से प्यार जताना ये कोई बात हुई
अब तो इस रंज के माहौल पे आती है हँसी
रात दिन आँसू बहाना ये कोई बात हुई
मिलोगे लोगों से तब ही तो खुदको जानोगे
कहीं पे आना न जाना ये कोई बात हुई
प्यार में डूबो तो फिर और उभरना कैसा
कहीं से लौटके आना ये कोई बात हुई
दिल में गर दर्द भरा है कभी तो छलकेगा
अश्क आँखों के छिपाना ये कोई बात हुई
प्यार को बोझ की मानिंद अब न ढोएँगे
कि नाज़ों-नखरे उठाना ये कोई बात हुई
कोई दिन यों भी पिलाओ कि फिर न उतरे कभी
आए दिन पीना-पिलाना ये कोई बात हुई
|