तीर छूटा
गो तीर छूटा पर हदों के दरमियान रहा
न बेईमान हुए और न ईमान रहा
पहुँच भी पाऊँगा मंज़िल पे, ख़ुदपे शक है मुझे
मैं आए दिन अगर उतारता थकान रहा
मैं बूढ़े घाघ तजुर्बों से बचके रहता हूँ
यही है राज़ कि मासूम और जवान रहा
वे अपने बारे में थोड़ा तो जानते होंगे
मुझे था उनपे, उन्हें ख़ुदपे ये ग़ुमान रहा
लो एक तीर भी साबुत-कमर नहीं निकला
मैं ख़ामख़्वाह ही ताने हुए कमान रहा
छुआके पाँव, दुआएँ तो उसको दी मैंने
वो टाँग खींच न ले, ये भी मुझको ध्यान रहा
१८ मई २००९
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