लोग कैसे ज़मीं पे
लोग कैसे ज़मीं पे चलते हैं
देख, सूरज के पाँव जलते हैं
उन्हीं ख़्वाबों में ही तो ज़िंदा हूँ
मेरी आँखों में जो भी पलते हैं
लोग होते हैं पर नहीं होते
भीड़ में जब कभी निकलते हैं
लोग बेहिस, घरों के साए में
हम दरख़्तों के साथ चलते हैं
लोग होते हैं कामयाब तभी
जब भी अपना-सा बन के छलते हैं
लोग शहरों में आके बसते हैं
जब कभी इनके पर निकलते हैं
धूप अब इनको रास आती है
चाँदनी में ये जिस्म जलते हैं
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