उसको मैं अच्छा लगता था
उसको मैं अच्छा लगता था
मैं इसमें क्या कर सकता था
एक ग़ज़ब की सिफ़त थी मुझमें
रोते-रोते हँस सकता था
नज़र थी उसपे जिसके लिए मैं
फ़कत गली का इक लड़का था
जाने क्यों सब दाँव पे रक्खा
चाहता तो मैं बच सकता था
मेरा उसको अच्छा कहना
उसे बुरा भी लग सकता था
बेहद ऊँचा उड़ा वो क्योंकि
किसी भी हद तक गिर सकता था
खानदान और वंश के रगड़े!
मैं तो केवल हँस सकता था
१८ मई २००९
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