पागलों की इस कदर
पागलों की इस कदर कुछ बदगु़मानी बढ़ गई
उनके हिस्से की दवा भी हमको खानी पड़ गई
उनको काँधा देने वाली भीड़ थी, भगवान था
हमको अपनी लाश आखिर खुद उठानी पड़ गई
भीड़ का उनको नशा था, बोतलें करती भी क्या
तिस पे रसमों-रीतियों की सरगिरानी बढ़ गई
छोटे शहरों, छोटे लोगों को मदद मिलनी तो थी
हाकिमों के रास्ते में राजधानी पड़ गई
कुछ अलग लिक्खोगी तो तुम खुद अलग पड़ जाओगी
यों ग़ज़ल को झांसा दे, आगे कहानी बढ़ गई
दिल में फिर उट्ठे ख़याल ज़हन में ताज़ा सवाल
आए दिन कुछ इस तरह मुझपर जवानी चढ़ गई
'वार्ड नं. छ' को 'टोबा टेक सिंह' ने जब छुआ
किस कदर छोटी मिसाले-आसमानी पड़ गई
१८ मई २००९
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