जब भी लोगों से मिलता हूँ
जब भी लोगों से मिलता हूँ, घर आता हूँ
सबसे ज़्यादा अपने-आप से घबराता हूँ
हकलाते-हकलाते जब खुलने लगता हूँ
जाने किस-किसको क्या-क्या कह आता हूँ
बंदर, मोहरे, बुत, स्टैच्यू... बनाने वाला
बोला मुझसे चलो तुम्हे भी समझाता हूँ
चक्कर को चिंतन कहकर वो ख़ुश हो लेंगे
एक जगह बैठे-बैठे मैं थक जाता हूँ
मेरी खिड़की में क्योंकर वो सिर देते हैं
जिन्हें शिकायत है मैं उनका सिर खाता हूँ
२५ जनवरी २०१०
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