डर में था
जाने मैं किस डर में था
फिर देखा, तो घर में था
जो ढब कट्टर लोगों का है
वही कभी बंदर में था
लोग नए थे बात पुरानी
क्या मैं किसी खंडहर में था
बच निकला उससे, तो जाना
वो भी इसी अवसर में था
उनके ज़ख़्म सजे थे तन पर
मेरा दर्द जिगर में था
1 जुलाई 2006
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