जो गया
जो गया उससे निकलना चाहता हूँ
आते लम्हों में धड़कना चाहता हूँ
मेरा दुख लाएगा सुख तेरे लिए
मुझको करने दे जो करना चाहता हूँ
प्यार से भर दो मेरा जामे-हयात
हश्र तक भर कर छलकना चाहता हूँ
जान जाए प्यार गर जी भर मिले
ऐसी सूली पर लटकना चाहता हूँ
ये भी सच्चाई है पर कैसे कहूँ
तुझसे मैं बचके निकलना चाहता हूँ
मंज़िलों को पाके ही समझा हूँ ये
मैं अभी कुछ दिन भटकना चाहता हूँ
16 जनवरी 2006
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