आज मुझे
आज मुझे ज़ार-ज़ार आँख-आँख रोना है
सदियों से गलियों में जमा लहू धोना है
रिश्तों के मोती सब बिखर गए दूर-दूर
प्यार का इक तार कोई इनमें पिरोना है
इंसाँ बनके आए थे इंसाँ बनके जाएँगे
हिंदू या मुसलमान होना भी कोई होना है
माना तू हक़ीक़त है और ख़ूबसूरत है
मेरे ख़्वाबों वाला मुखड़ा भी सलोना है
प्यार बनके जब चाहो मेरे घर चले आओ
आँखों में आँगन है, दिल मेरा बिछौना है
16 जनवरी 2006
|