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अनुभूति में संजय ग्रोवर की रचनाएँ

नई ग़ज़लें--
उसे अपने दिल में
जब भी लोगों से मिलता हूँ
दिन हैं क्या बदलाव के
भेद क्या बाकी बचा है
मोहरा अफवाहें फैलाकर
यह जुदा इक मसअला है

अंजुमन में
असलियत के साथ
आज मुझे
आ जाएँगे
इनको बुरा लगा
उसको मैं अच्छा लगता था
क्यों करते हैं मेहनत
किस्सा नहीं हू
कोई बात हुई
ग़ज़लों में रंग
जो गया
डर में था
तितलियाँ
तीर छूटा
तुम देखना
तौबा तौबा
दर्द को इतना जिया
दासी बना के मारा
पागलों की इस कदर
बह गया मैं
बाबा
बोलता बिलकुल नहीं था
मौत की वीरानियों में
मंज़िलों की खोज में
रोज़ का उसका
लड़केवाले लड़कीवाले
लोग कैसे ज़मीं पे
सच कहता हूँ
सोचना
हो गए सब कायदे

महिला दिवस पर विशेष
स्त्री थी कि हँस रही थी
हमारी किताबों में हमारी औरतें

 

किस्सा नहीं हूँ

कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूँ
किस्सी साज़िश का मैं हिस्सा नहीं हूँ

किसी की छाप अब मुझपर नहीं है
मैं ज़्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हूँ

तुम्हारी और मेरी दोस्ती क्या
मुसीबत में, मैं ख़ुद अपना नहीं हूँ

मुझे मत ढूँढ़ना बाज़ार में तुम
किसी दुकान पर बिकता नहीं हूँ

मैं ज़िंदा हूँ मुसलसल यों न देखो
किसी दीवार पर लटका नहीं हूँ

मुझे देकर न कुछ तुम पा सकोगे
मैं खोटा हूँ मगर सिक्का नहीं हूँ

तुम्हे क्यों अपने जैसा मैं बनाऊं
यकीनन जब मैं ख़ुद तुमसा नहीं हूँ

लतीफ़ा भी चलेगा गर नया हो
मैं हर इक बात पर हँसता नहीं हूँ

ज़मीं मुझको भी अपना मानती है
कि मैं आकाश से टपका नहीं हूँ

हज़ारों साज़िशें हैं रास्ते में
मैं थमता हूँ मगर रुकता नहीं हूँ

1 जुलाई 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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