किस्सा नहीं हूँ
कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूँ
किस्सी साज़िश का मैं हिस्सा नहीं हूँ
किसी की छाप अब मुझपर नहीं है
मैं ज़्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हूँ
तुम्हारी और मेरी दोस्ती क्या
मुसीबत में, मैं ख़ुद अपना नहीं हूँ
मुझे मत ढूँढ़ना बाज़ार में तुम
किसी दुकान पर बिकता नहीं हूँ
मैं ज़िंदा हूँ मुसलसल यों न देखो
किसी दीवार पर लटका नहीं हूँ
मुझे देकर न कुछ तुम पा सकोगे
मैं खोटा हूँ मगर सिक्का नहीं हूँ
तुम्हे क्यों अपने जैसा मैं बनाऊं
यकीनन जब मैं ख़ुद तुमसा नहीं हूँ
लतीफ़ा भी चलेगा गर नया हो
मैं हर इक बात पर हँसता नहीं हूँ
ज़मीं मुझको भी अपना मानती है
कि मैं आकाश से टपका नहीं हूँ
हज़ारों साज़िशें हैं रास्ते में
मैं थमता हूँ मगर रुकता नहीं हूँ
1 जुलाई 2006
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