दिन हैं क्या बदलाव के
दिन हैं क्या बदलाव के, अवकाश के!
औरतें बदलेंगी कपड़े लाश के
जीवितों की वे उड़ाते हैं हँसी
जिनके अपने सारे लक्षण लाश के
यों तो केवल शून्य है, बस रंग है
फिर भी देखो भाव इस आकाश के
धर्म कह, भगवान कह या ओट कह
आदमी पीछे छुपे हैं लाश के
धर्मो-मज़हब की बगल में हंस रहा
दिन फिरे हैं कैसे सत्यानाश के
जोकरों की मौज है अब देश में
बिक रहे हैं महँगे, डब्बे ताश के
मर्द में है या जवानी हम में है
हँस रहे हैं डब्बे च्यवनप्राश के
रह गए बाक़ी रदीफ़ और काफ़िए
दिन गए दुष्यंत के और पाश के
२५ जनवरी २०१०
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