मंज़िलों की खोज में
मंज़िलों की खोज में तुमको जो चलता-सा लगा
मुझको तो वो ज़िंदगी भर घर बदलता-सा लगा
धूप आई तो हवा का दम निकलता-सा लगा
और सूरज भी हवा को देख जलता-सा लगा
झूठ जबसे चाँदनी बन भीड़ को भरमा गया
सच का सूरज झूठ के पाँवों पे चलता-सा लगा
मेरे ख़्वाबों पर ज़मीनी सच की बिजली जब गिरी
आसमानी बर्फ़ का भी दिल दहलता-सा लगा
चंद कतरे ठंडे काग़ज़ के बदन को तब दिए
खून जब अपनी रगों में कुछ उबलता-सा लगा
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