पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश 

१. २. २०२५1

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माघ मास के तीर

 

 

बींध रहे हैं
नग्न देह को, माघ मास के तीर
भीतर-भीतर महक रहा पर
ख्वाबों का कश्मीर

काँप रही हैं
गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा
भाव काँगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा
मन की विवश टिटहरी गाए
मध्य रात्रि में पीर

नर्तन करते
खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी
गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी
पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को
समझ रहे हैं हीर

बीड़ी बनकर
सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा
विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा
खींच रहा कुहरे में दिनकर
वसुधा की तस्वीर

- भीमराव 'जीवन'

इस माह
(माघ विशेषांक के अंतर्गत)

गीतों में-

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अनामिका सिंह

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अनिता सुधीर आख्या

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अश्विनी कुमार विष्णु

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उदय शंकर सिंह उदय

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ऋता शेखर मधु

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ओमप्रकाश नौटियाल

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कामिनी श्रीवास्तव कीर्ति

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जिज्ञासा सिंह

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निरुपमा सिंह

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पद्मा मिश्रा

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पूर्णिमा जोशी

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भीमराव जीवन

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मंजु लता श्रीवास्तव

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मधु प्रधान

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मधु संधु

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विश्वम्भर शुक्ल

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शशि पुरवार

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शिवानंद सिंह सहयोगी

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श्रीधर आचार्य शील

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सुरेन्द्र पाल वैद्य

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हरिहर झा

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अंजुमन में-

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परमजीत कौर रीत

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रमा प्रवीर वर्मा

दोहों में-

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कुसुम कोठारी प्रज्ञा

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मंजु गुप्ता

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शरद तैलंग

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सत्यशील राम त्रिपाठी

छंदमुक्त में-

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मनोज मित्तल

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संजय सुजय बासल

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