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ज्योति पर्व
आया |
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जगमग जगमग दीप जल उठे
ज्योति पर्व आया
1
तो़ड़ तिमिर के बंधन सारे
आओ खुशी मनाएँ
घर घर में खुशहाली छाए
ऐसे दीप जलाएँ
दीप ज्योति का पर्व धरा पर
स्वर्णिम अवसर लाया
ज्योति पर्व आया
1
प्राण किये बलिदान देश पर
एक दीप उस द्वारे
एक एक दीपक उस घर में
जहाँ सदा अँधियारे
साथ निभाना है निर्धन का
बनकर उसका साया
ज्योति पर्व आया
1
एक दीप उस घर पर रखना
जिसने अपना खोया
पूरे वर्ष मनाया मातम
फूट फूट कर रोया
आज उसे भी लगे कि जैसे
उसने भी कुछ पाया
ज्योति पर्व आया
1
धरती के सब प्राणी खुलकर
झूमें नाचें गाएँ
भूल परस्पर भेदभाव सब
अभिनव पर्व मनाएँ
जीवन में जीवन को समझे
हो कुछ ऐसी माया
ज्योति पर्व आया
1
- डॉ परशुराम शुक्ल |
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इस माह
दीपावली के अवसर पर
गीतों में-
दोहों में-
मुक्तक में-
पिछले माह
१ सितंबर २०१७ को
प्रकाशित
अंक में
गीतों में-
आभा खरे,
कन्हैयालाल वक्र,
कल्पना रामानी,
कृष्ण
कुमार तिवारी किशन,
कृष्ण
नंदन मौर्य,
जगदीशचंद्र शर्मा,
देविमणि पांडेय,
नंद
चतुर्वेदी,
पीयूष पराशर,
पूर्णिमा
वर्मन,
ब्रजेश नीरज,
डॉ.
भावना तिवारी,
रजनी
मोरवाल,
रामशंकर
वर्मा
सोम ठाकुर,
हरिशंकर आदेश, अंजुमन में-
गोपाल कृष्ण
सक्सेना 'पंकज',
शशि
पुरवार,
सावित्री तिवारी आजमी,
सुरेन्द्र पाल वैद्य,
हरिवल्लभ शर्मा। दोहों में-
डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’,
रविकांत
अनमोल,
विश्वंभर शुक्ल,
श्यामल सुमन,
संजीव
सलिल। कुंडलिया में-
अम्बरीश श्रीवास्तव,
त्रिलोक
सिंह ठकुरेला,
परमजीत कौर रीत।
मुक्तक में-
राजेश राज,
सुरेश चंद्र सर्वहारा।
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