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कुछ माटी के
बिकें दिए
दीवाली हो
कुछ अपने भी खिलें हिये
दीवाली हो
डलिया में रखकर ला रहे कपास नई
इसकी बाती देगी धवल उजास नई
उसकी कैसे मने आज दीवाली कह
फूटी दमड़ी जिसके अपने पास नहीं
तेरे भी, मेरे भी लिए
दिवाली हो
कुछ अपने भी खिलें हिये,
दीवाली हो
दीवाली पर घर घुस आती अला बला
बुरी हवा या बुरी नज़र का जोर चला
पत्ते ये शिरीष के बाँधो दरवज्जे
हर अनिष्ट को द्वारे से ही देंय टला
तरह तरह के जतन किये
दीवाली हो
कुछ अपने भी खिलें हिये
दीवाली हो
पान फूल बेचे,कन्दीलें कागज़ की
बाज़ारों पर हावी चीलें कागज़ की
इक छन को ये मन हरियल हो जाएगा
ज़रा झलक मिल जाए नीले कागज़ की
बरसों गम के घूँट पिये
दीवाली हो
कुछ अपने भी खिलें हिये
दीवाली हो
कोरे कुल्हड़ में भरियो बाबूजी खील
भरियो दिल में नयी नयी
खुशियों की झील
तेरी खुशियों में मेरा भी साझा हो
हाट तलक आये हम चलके मीलों मील
यही आस ले रोज़ जिये
दीवाली हो
कुछ अपने भी खिलें हिये
दीवाली हो
- पंकज परिमल
१ अक्तूबर २०१७ |