हिन्दी है आँगन की
तुलसी
हिन्दी है आँगन की तुलसी, अल्पना, रंगोली है
फूलों जैसी भाषा अपनी टीका,
चंदन, रोली है
कान्हा की वंशी की
सरगम, है शिव का तांडव नर्तन
जन गण की ताकत है हिंदी, श्रद्धा है, चिंतन, मंथन
शब्द करे टंकार तो लगता ये वीरों
की टोली है
हृदय उदार,
कभी नहिं सोचा, किसने, कितना प्यार दिया
जाने कितनी भाषाओं को हँसकर अंगीकार किया
जितनी सरल सुबोध है हिन्दी
उतनी मन की भोली है
सुख-दुख हो या
विरह-मिलन, ये हाथ पकड़कर है चलती
सत्य, अहिंसा, ज्ञान मार्ग पर, दीपक बनकर है जलती
सुंदर ग्रन्थ-प्रबंध लिए, रस-छंद भरी,
मुँहबोली है
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-कृष्णकुमार तिवारी किशन
९ सितंबर २०१३
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