आआो ऐसे दीप
जलाये
मन का तिमिर सभी मिट जाये
फैला हुआ द्वन्द्व का जंगल
अहम् भाव का होता दंगल
करता नहीं किसी का कोई
बिना लाभ के कोई मंगल
आओ दिल से साथनिभायें
मन का तिमिर सफी मिट जाये
चपल चाल की खाल उधेडें
और अधिक इनको क्या झेलें
विषधर मार कुण्डली बैठे
चन्दन वन में नित विष धोलें
आओ अमृत कोष लुटायें
मन का तिमिर सभी मिट जाये
दर्द एक दूजे का जानें
अधर अधर पर हों मुस्कानें
दिवस चार का यह वृन्दावन
फिर क्या हरकत हों बचकानें
आओ गीत प्रीति के गायें
मन का तिमिर सभी मिट जाये
- जयराम जय
१ अक्तूबर २०१७ |