हिन्दी की महिमा परम, वैज्ञानिक है रूप।
सरल-हृदयग्राही-मधुर, विकसित कोष अनूप।
विकसित कोष अनूप, तरलता रही उदय से।
बोली-भाषा अन्य, शब्द जुड़ गये हृदय से।
भारत की है शान, भाल की जैसे बिन्दी।
सुरभाषा का अंग, 'रीत' है अपनी हिन्दी।
तकनीकी विस्तार ने, खूब बढाया मान।
विश्व पटल पर मिल रही, हिन्दी को पहचान।
हिन्दी को पहचान, विदेशों ने अपनायी।
लेकिन अपने देश, सुता क्यों हुई परायी।
राजभाषिका मान, सहज उपलब्धि इसी की।
बढ़ जाएगा शान, बनेगी जब तकनीकी।
निज भाषा संस्कार पर, कर न सके जो मान।
जग में हो उपहास औ', खो बैठे सम्मान।
खो बैठे सम्मान, जाति वह सदा पिछडती।
निज भाषा उत्थान, दशा से बात सुधरती।
होता तभी विकास, बँधेगी फिर नव-आशा।
उत्तम रहें प्रयास, फले-फूले निज भाषा।
आओ मिल सारे करें, मन से यह प्रण आज।
हिन्दी में होंगे सभी, अपने सारे काज।
अपने सारे काज, राज की हिन्दी भाषा।
पायेगी सम्मान, देश की बनकर आशा।
छोड विदेशी राग, इसी का गौरव गाओ।
हिन्दी पर है गर्व, शान से बोलें आओ।