मातृभाषा के प्रति

 

 

 

 

लोरी गाई हिन्दी में

जब बच्चे थे तब माता ने, लोरी गाई हिन्दी में
पहली पहली जुबाँ हमारी
थी तुतलाई हिन्दी में

जाने कितने उधम किये, की धमा-चौकडी शाला में
हर मौके हमने टीचर से, डाँटें खाईं हिन्दी में
गली मौहल्ले में खेले तो, खेल खेल में तोड़े काँच
हमरे कारण मात-पिता की
हुई खिंचाई हिन्दी में

माटसाब की निगरानी में, पढ़-लिख कर इन्सान बने
हमने तो भई इंगलिश की भी करी पढाई हिन्दी में
तुलसी ने चौपाई, मीरा और सूर ने भजन लिखे
कबिरा ने साखी, खुसरो ने
मुकरी गाई हिन्दी में

माँ का वन्दन, पूजा अर्चन, देशप्रेम के सारे गीत
हमने दुश्मन को सीमा पर, हाँक लगाई हिन्दी में
हिन्दी हमसे, हम हिन्दी से, देह-प्राण के रिश्ते तब भी
हिन्दी की हमने खुद ही
हिन्दी करवाई हिन्दी में

-- कन्हैयालाल वक्र
९ सितंबर २०१३

 

   

 

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