चढो अटारी
धीरे-धीरे, रखना दीप संभालकर
एक शिकनभी रह ना जाए, उजियारेके भाल पर
पहन घाघरा, चूड़ी-बिछिया
छनके घुंघरू पांव के
झिलमिल-झिलमिल दीप सजाकर
अपने तन के गाँव के
चढो अटारी धीरे-धीरे, रखना दीप संभालकर
जैसे तुम बेंदी रखती हो, अपने गोरे भाल पर
करके माँग सिंदूरी अपनी
दृग में काजल आँजकर
अपनी सोने की मूरत को
और प्यार से माँजकर
चढो अटारी धीरे-धीरे, रखना दीप सँभालकर
ज्यों मेंहदीके फूल काढ़ती हो, मन के रूमाल पर
हँसुली, हार और लटकारा
बाजूबंद हमेल से
कह देंना नथुनी-कुंडल से
सदा रहें वे मेल से
चढ़ो अटारी धीरे-धीरे रखना दीप सँभालकर
ज्यों तुम विमल चांदनी मलतीं, तन के लाल गुलाल पर