मातृभाषा के प्रति

 

 

 

 

वरदान है हिन्दी

भावाभिव्यक्ति के लिए वरदान है हिन्दी
साहित्य की समृद्धि का सोपान है हिन्दी
जो चाहे -समझ-बोल ले, आसान है हिन्दी
सच पूछिए तो हिन्द की पहचान है हिन्दी

कभी हिन्दी को लेकर सोचना मत, ये बिचारी है
इसे अपनाने आगे आ चुकी दुनिया ये सारी है
महत्ता इसकी 'गूगल' और 'माइक्रोसाफ्ट' ने समझी
ये पूरे विश्व की है अब नहीं केवल हमारी है

शहीदों का तिरंगे के कफ़न से मान बढ़ता है
हो गंगाजल तो उसका आचमन से मान बढ़ता है
किसी सत्कर्म का, निष्ठा-लगन से मान बढ़ता है
किसी भाषा का, बोली का, चलन से मान बढ़ता है

किसी से माँग कर कपड़ा अगर पहना, तो क्या पहना?
न जिस घर पर हो अपना हक़, वहाँ रहना तो क्या रहना?
चढ़ी हो झूठ की पालिश तो वो गहना भी क्या गहना?
कहा जो ग़ैर की भाषा में वो कहना भी क्या कहना?

--राजेश राज
९ सितंबर २०१३

 

   

 

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