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दीप लक्ष्मी दो
हमें, ऐसा कुछ वरदान
तिमिर विश्व का दूर कर, फैलाएँ सदज्ञान।
युग युग से जलते रहे, दीप हमारे द्वार
माँ तुम आकर मेट दो, अंतरतम इस बार।
राह दिखाओ माँ हमें, बढ़ें कदम जिस ओर
दीपक प्रेम, प्रकाश के, जगमग हों उस छोर।
जहाँ अँधेरे घोर हों, मायूसी दिन रात
बन प्रकाश जाना वहाँ, दीवाली को मात।
जन कल्याणी काट दो, जन जन मन का क्लेश
रिद्धि, सिद्धि, सुख सम्पदा का हो बहुल प्रवेश।
- कल्पना रामानी
१ अक्तूबर २०१७ |