मातृभाषा के प्रति


नया उजाला देगी हिंदी

तम-जाला हर लेगी हिंदी, नया उजाला देगी हिंदी।
विश्व-ग्राम में सबल सूत्र बन, सौख्य निराला देगी हिंदी।
द्वीप-द्वीप हर महाद्वीप में, हम हिंदी के दीप जलाएँ।

जीवन को सक्षम कर देगी, वर्तमान मधुरिम कर देगी।
एक सुखद अतीत दे हमको, भविष्य भी स्वर्णिम कर देगी।
नगर-नगर घर ग्राम-ग्राम में, हम हिंदी का अलख जगाएँ।।

हीरक दें, मौक्तिक कंचन दें, शिक्षा दे सुखमय जीवन दें।
किंतु, प्रथम कर्तव्य हमारा, संतति को संस्कृति का धन दें।
करें नहीं मिथ्या समझौता, सच्चे भारतीय कहलाएँ।।

वैमनस्य का भूत भगाएँ, ईर्ष्या-द्वेष अपूत मिटाएँ।
नैतिक मूल्यों की रक्षा कर, सच्चे संस्कृति-दूत कहाएँ।
आज देहरी पर हर उर की, पावन प्रेम-प्रदीप सजाएँ।।

जहाँ रहें, वह देश हमारा, उसका हित उद्देश्य हमारा।
किंतु मूल से जुड़े रहें हम, बहे अनवरत जीवन-धारा।
सच्चे श्रेष्ठ नागरिक बनकर, हम दोहरा दायित्व निभाएँ।।

दूर रहे हर दुख की छाया, बंधु! निरोगी हो हर काया।
सदन-सदन नित आलोकित हो, हृदय-अयन में प्यार समाया।
ले सर्वात्मभाव अंतर में, पहले मन का तिमिर मिटाएँ।।

-प्रो हरिशंकर आदेश
16 सितंबर 2005

 

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