हिन्दी महिमा
हिन्दी मे गुण बहुत है, सम्यक
देती अर्थ।
भाव प्रवण अति शुद्ध यह, संस्कृति सहित समर्थ।।
वैयाकरणिक रूप में, जानी गयी है सिद्ध।
जिसका व्यापक कोश है, है सर्वज्ञ प्रसिद्ध।।
निज भाषा के ज्ञान से, भाव भरे मन मोद।
एका लाये राष्ट्र में, दे बहु मन आमोद।।
बिन हिन्दी के ज्ञान से, लगें लोग अल्पज्ञ।
भाव व्यक्त नहि कर सकें, लगे नही मर्मज्ञ।।
शाखा हिन्दी की महत्, व्यापक रूचिर महान।
हिन्दी भाषा जन दिखें, सबका सबल सुजान।।
हिन्दी संस्कृति रक्षिणी, जिसमे बहु विज्ञान।
जन-जन गण मन की बनी, सदियों से है प्राण।।
हिन्दी के प्रति राखिये, सदा ही मन में मोह।
त्यागे परभाषा सभी, मन से करें विछोह।।
निज भाषा निज धर्म पर, अर्पित मन का सार।
हर जन भाषा का करे, सम्यक सबल प्रसार।।
देश प्रेम अनुरक्ति का, हिन्दी सबल आधार।
हिन्दी तन मन में बसे, आओ करंे प्रचार।।
हिन्दी हिन्दी सब जपैं, हिन्दी मय आकाश।
हिन्दी ही नाशक तिमिर, करती दिव्य प्रकाश।।
हिन्दी ने हमको दिया, स्वतंत्रता का दान।
हिन्दी साधक बन गये, अद्भुत दिव्य प्रकाश।।
नही मिटा सकता कोई, हिन्दी का साम्राज्य।
सुखी समृद्धिरत रहें, हिन्दी भाषी राज्य।।
हिन्दी में ही सब करें, नित प्रति अपने कर्म।
हिन्दी हिन्दुस्थान हित, जानेंगे यह मर्म।।
ज्ञान भले लें और भी, पर हिन्दी हो मूल।
हिन्दी से ही मिटेगी, दुविधाओं का शूल।।
हिन्दी में ही लिखी है, सुखद शुभद बहु नीति।
सत्य सिद्ध संकल्प की, होती है परतीति।।
..डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘‘नन्द’’
१० सितंबर २०१२
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