बन्द किताब
एक
बन्द किताब
कभी खोलो तो देखो
पाओगे तुम
नेह भरे झरने
सूरज की किरने
दो
बन्द किताब
जब-जब भी खोली
पता ये चला-
तुमसे पाया बेहिसाब
चुकाया न कुछ भी
तीन
बन्द किताब
जो खुली अचानक
छलकी आँखें
हर पन्ना समेटे
सिर्फ़ तेरी कहानी
चार
बन्द किताब
पन्ने जब पलटे-
शिकवे भरे
फ़िक्र रही लापता
कोई जिये या मरे
पाँच
बन्द किताब
बरसों बाद खुली
खुशबू उड़ी
हर शब्द से तेरी
मधुर छुअन की
छह
बन्द किताब
कभी खोल जो पाते
पता चलता-
तुम रहे हमारे
जीवन से भी प्यारे
९ अप्रैल २०१२
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खुली किताब
सात
खुली किताब
थी ज़िन्दगी तुम्हारी
बाँच न सके
आज बाँचा तो जाना
अनपढ़ थे हम
आठ
खुली किताब
झुकी तेरी पलकें
नैन कोर से
डब-डब करके
गर्म आँसू छलके
नौ
खुली किताब
ये बिखरी अलकें
आवारा घूमे
ज्यों दल बादल के
ज्यों खूशबू मलके
दस
खुली किताब
तेरा चेहरा लगे
पन्ना-पन्ना मैं
जब पढ़ता जाऊँ
सिर्फ़ तुझको पाऊँ
ग्यारह
खुली किताब
रहा दिल तुम्हारा
पढ़ न पाए
तो समझ न पाए
सदियों पछताए
बारह
खुली किताब
नज़र आया वही
लाल गुलाब
गले लग तुमने
दिया पहली बार |