धूप की चादर
घना कुहासा छा जाता है
ढकते धरती अम्बर ।
ठंडी-ठंडी चलें हवाएँ
सैनिक जैसी तनकर।।
भालू जी के बहुत मजे हैं
ओढ़ लिया है कंबल।
सर्दी के दिन कैसे बीतें
ठंडा सारा जंगल।।
खरगोश दुबक एक झाड़ में
काँप रहा था थर -थर।
ठण्ड बहुत लगती कानों को
मिले कहीं से मफलर।।
उतर गया आँगन में सूरज
बिछा धूप की चादर।
भगा कुहासा पल भर में ही
तनिक न देखा मुड़कर।।
24 जून
2007 |