ज़िन्दगी की लहर
आग़ के ही बीच में, अपना बना घर
देखिए।
यहीं पर रहते रहेंगे, हम उम्र भर देखिए।
एक दिन वे भी जलेंगे, जो लपट से
दूर हैं।
आँधियों का उठ रहा, दिल में वहाँ डर देखिए।
पैर धरती पर हमारे, मन हुआ आकाश
है।
आप जब हमसे मिलेंगे, उठा यह सर देखिए।
जी रहे हैं वे नगर में,
द्वारपालों की तरह।
कमर सजदे में झुकी है, पास आकर देखिए।
टूटना मंज़ूर पर झुकना हमें आता
नहीं।
चलाकर ऊपर हमारे, आप पत्थर देखिए।
भरोसे की बूँद को मोती बनाना है
अगर।
ज़िन्दगी की लहर को सागर बनाकर देखिए।
१८ जनवरी २०१०
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