| अनुभूति में 
                  रामेश्वर कांबोज 
                  हिमांशु 
                  की रचनाएँ-- 
                  अंजुमन में—अंगार कैसे आ गए
 अधर पर मुस्कान
 आजकल
 इंसान की बातें
 ज़िंदगी की लहर
 मुस्कान तुम्हारी
 
                  हास्य व्यंग्य 
                  में—कर्मठ गधा
 कविजी पकड़े गए
 पुलिस परेशान
 दोहों में—गाँव की चिट्ठी
 वासंती दोहे
 कविताओं में—ज़रूरी है
 बचकर रहना
 बेटियों की 
                  मुस्कान
 मैं घर लौटा
 मुक्तकों में—सात 
                  मुक्तक
 क्षणिकाओं में—दस क्षणिकाएँ
 गीतों में—आ भाई सूरज
 आसीस अंजुरी भर
 इस बस्ती में
 इस शहर में
 इस सभा में
 उजियारे के जीवन में
 उदास छाँव
 उम्र की 
                  चादर की
 कहाँ गए
 गाँव अपना
 तुम बोना काँटे
 दिन डूबा
 धूप 
                  की चादर
 धूप ने
 लेटी है माँ
 संकलन में—नई भोर
 नया उजाला
 |  | उम्र की 
                  चादर की
 बुक्कल मारकर
 बैठी है लड़की
 नीम उजाले में
 इन्तज़ार का स्वेटर
 बुनती जाती है
 आंखें टिकी हैं
 उम्र कुतरती सलाइयों पर
 फिर भी फन्दे हैं कि
 छूट छूट जाते हैं
 उम्र
 फूटे घड़े के पानी की तरह
 बूंद बूंद कर रिसती रहती है
 लड़की
 अधूरे स्वेटर की पीड़ा
 उम्र के हर मोड़ पर
 चुपचाप सहती है ।
 24 जून 
                  2007 |