अधर पर मुस्कान
अधर पर मुस्कान दिल में डर लिए
लोग ऐसे ही मिले पत्थर लिए।
आँधियाँ बरसात या कि बर्फ़ हो
सो गए फुटपाथ पर ही घर लिए।
धमकियों से क्यों डराते हो हमें
घूमते हम सर हथेली पर लिए।
मिल सका कुछ को नहीं दो बूँद जल
और कुछ प्यासे रहे सागर लिए।
हार पहनाकर जिन्हें हम खुश हुए
वे खड़े हैं सामने पत्थर लिए।
१८ जनवरी २०१०
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