आजकल
हवा में फिर से घुटन है आजकल
रोज सीने में जलन है आजकल
घुल रही नफरत नदी के नीर में
नफरतों का आचमन है आजकल
कौन-सी अब छत भरोसे मन्द है
फर्श भी नंगे बदन है आजकल
गले मिलते वक्त खंजर हाथ में
हो रहा ऐसे मिलन है आजकल
फूल चुप खामोश बुलबुल क्या करें
लहू में डूबा चमन है आजकल
गोलियाँ छपने लगी अखबार में
वक्त कितना बदचलन है आजकल
जा नहीं सकते कहीं बचकर कदम
बाट से लिपटा कफन है आजकल
१८ जनवरी २०१०
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