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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  वासंती दोहे

वसंत द्वारे है खडा, मधुर-मधुर मुस्कान।
साँसों में सौरभ घुला, जग भर से अनजान।।

चिहुँक रही सुनसान में, सुधियों की हर डाल।
भूल न पाया आज तक, अधर छुअन वह भाल।।

जगा चाँद है देर तक आज नदी के कूल।
लगता फिर से गड़ गया, उर में तीखा शूल।।

मौसम बना बहेलिया, जीना मरना खेल।
घायल पाखी हो गए, ऐसी लगी गुलेल।।

अंजुरी खाली रह गई, बिखर गए सब फूल।
उनके बिन मधुमास में, उपवन लगते शूल।।

१ मार्च २००६

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