| उजियारे के जीवन में ना पैरों के नीचे धरती।सिर पर भी आकाश नहीं।।
 पलभर मुड़कर देखे पीछे।
 इतना तक अवकाश नहीं।।
 मज़्में वालों ने पी डालासारा नीर सरोवर का,
 हुआ बुरा अंजाम यहाँ
 दुनिया की सभी धरोहर का।
 बाकी तो बच पाई तलछट।बुझती जिससे प्यास नहीं॥
 अंधकूप में डूब गए हैं अनगिन पथिक कारवाँ के ,
 देखो कैसे खिसक गए हैं
 रहबर हमें यहाँ लाके।
 बेगानों की इस बस्ती में।कोई किसी का खास नहीं।।
 बूँद-बूँद विष पीलें जग का सोचा था हमने मन में
 बनी तभी प्यासी दीवारें
 झुलसे बंजर जीवन में।
 इसीलिए अपने ऊपर भी।हो पाता विश्वास नहीं।।
 पाप –पुण्य की परिभाषाएँसड़कों पर रोज़ बदलती है,
 दीवारों से डर लगता जब
 मुँह से बात निकलती है।
 अपने और परायों तक का।हो पाता विश्वास नहीं।।
 किसी आँख से बहते आँसू
 जब ले लिए हथेली पर
 आरोप लगाने वालों को मिला यही अच्छा अवसर।
 धूल शूल के सिवा और कुछ।छूटा अपने पास नहीं।।
 मन में हम अफ़सोस करें क्यों बीती कड़वी बातों का
 उजियारे के जीवन में है
 हाथ बहुत ही रातों का।
 हमको धारा में बहने का।हो पाया अभ्यास नहीं।।
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