| इस बस्ती में जब-जब छुपकर वार करेगातब-तब वो मुस्काएगा।
 बैठ सामने चारण बनकर
 गुण जीभर कर गाएगा।।
 दौर मुसीबत का जब होगासाथ रहेंगे बेगाने।
 वह अपनों का लगा मुखौटा
 दूर कहीं छिप जाएगा।।
 घाव लगे तन-मन पर लाखोंबैरी मरहम ला देंगे।
 उसके वश में जितना होगा
 उतना नमक लगाएगा।।
 इस बस्ती में बैठके प्यारेप्यार वफ़ा की बात न कर।
 बंजर दिल की इस धरती पर
 उपवन कौन खिलाएगा।।
 अपनी चादर कितनी मैलीसमय नहीं जो देख सके।
 उजली चादर जिनकी दिखती
 उस पर दाग़ लगाएगा।।
 २६ मई २००८ |