अनुभूति में
रामेश्वर कांबोज
हिमांशु
की रचनाएँ--
अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी
हास्य व्यंग्य
में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए
पुलिस परेशान
दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे
कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की
मुस्कान
मैं घर लौटा
मुक्तकों में—
सात
मुक्तक
क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ
गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती में
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में
उदास छाँव
उम्र की
चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप
की चादर
धूप ने
लेटी है माँ
संकलन में—
नई भोर
नया उजाला
|
|
दिन डूबा
दिन डूबा
नावों के
सिमट गए पाल।
खिंच गई नभ में
धुएँ की लकीर
चढ़ गई
तट पर
लहरों की पीर
डबडबाई
आँख-सा
सिहर गया ताल।
थककर
रुक गई
बाट की ढलान,
गुमसुम
सो गया
चूर-चूर गान
हिलते रहे
याद के दूर तक रूमाल।
२१ जुलाई २००८
|