अंगार कैसे आ गए?
हर दिशा के हाथ में अंगार कैसे आ
गए।
बेकफ़न ये लाश के उपहार कैसे आ गए।।
मोल मिट्टी के बिके हैं, शीश कल
बाज़ार में।
दोस्तों के वेश में ,खरीदार कैसे आ गए।।
सरहदों के पार था अब तक लहू अब
तक क़तल।
देखते ही देखते इस पार कैसे आ गए।।
सिर उठाती आँधियाँ,
ये खेल होती हैं नहीं।
नमन करने को इन्हें लाचार कैसे आ गए।।
यही चले थे सोचकर कि अमन अब हो
गया।
खून के बादल यहाँ इस बार कैसे आ गए।।
१८ जनवरी २०१०
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