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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  अंगार कैसे आ गए?

हर दिशा के हाथ में अंगार कैसे आ गए।
बेकफ़न ये लाश के उपहार कैसे आ गए।।

मोल मिट्टी के बिके हैं, शीश कल बाज़ार में।
दोस्तों के वेश में ,खरीदार कैसे आ गए।।

सरहदों के पार था अब तक लहू अब तक क़तल।
देखते ही देखते इस पार कैसे आ गए।।

सिर उठाती आँधियाँ, ये खेल होती हैं नहीं।
नमन करने को इन्हें लाचार कैसे आ गए।।

यही चले थे सोचकर कि अमन अब हो गया।
खून के बादल यहाँ इस बार कैसे आ गए।।

१८ जनवरी २०१०

 

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