| दस क्षणिकाएँ 
                  १ जनता है हैरानकल जिसने जोड़े थे
 घर-घर जाकर हाथ
 वही खींचती कान।
 २ राजनीति में अगरअपराधी नहीं आएँगे
 तो अपराध रोकने के
 गुर कौन बताएँगे?
 ३ स्वामी जी यजमान के लिएसंकटमोचन यज्ञ करा रहे हैं
 और खुद तिहाड़ जा रहे हैं।
 ४ समाधान हो जब असंभवआयोग बिठाइए
 पेचीदे मामले
 बरसों तक लटकाइए।
 ५ वे अपराधियों को इस बारपार्टी से निकालेंगे
 लगता है सारा कीचड़
 किसी गंगा में डालेंगे।
 ६ सफ़ाई अभियान में उन्होंनेकमाल कर दिखाया
 अपने घर का कूड़ा
 पड़ोसी के घर के आगे फिकवाया।
 ७ जब हो खालीकाम न धंधा
 रसीद छपवा
 माँग ले चंदा।
 ८ फ़ाइलअंगद का पाँव बन गई
 बिना खाए-पिए
 हिलती नहीं
 लाख ढूँढ़ो
 सामने रखी होने पर भी
 मिलती नहीं।
 ९ वे परिवर्तन के दौर सेगुज़र रहे हैं
 रात-दिन अपनों का
 घर भर रहे है।
 १० डॉक्टर झोलारामजब से इलाज करने लगे हैं
 जिन्हें बरसों जीना था
 बे-रोक-टोक मरने लगे हैं।
 आबादी घटाकर
 पुण्य कमा रहे हैं
 बिना टिकट बहुतों को
 स्वर्ग भिजवा रहे हैं।
 १६ मई २००५ |