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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  बचकर रहना

चारों ओर रेंगते विषधर
बचकर रहना
इनसे बढ़कर मानुष का डर
बचकर रहना
भले लोग ही बसे यहाँ हैं
इन भवनों में
रोज फेंकते हैं ये पत्थर
बचकर रहना

ज़हर बुझी है इनकी वाणी
कपट कवच है
छल-प्रपंच है इनका बिस्तर
बचकर रहना

कदम-कदम पर फूलों का भ्रम
फैलाते हैं।
छुपे हुए फूलों में नश्तर
बचकर रहना

चंदन-वन को राख किया है
इन लोगों ने
अब आए ये वेश बदलकर
बचकर रहना

अंगारों पर चलकर हमने
उम्र बिताई
ढूँढ न पाए हम अपना घर
बचकर रहना

१६ फरवरी २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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