अनुभूति में
रामेश्वर कांबोज
हिमांशु
की रचनाएँ--
अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी
हास्य व्यंग्य
में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए
पुलिस परेशान
दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे
कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की
मुस्कान
मैं घर लौटा
मुक्तकों में—
सात
मुक्तक
क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ
गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती में
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में
उदास छाँव
उम्र की
चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप
की चादर
धूप ने
लेटी है माँ
संकलन में—
नई भोर
नया उजाला
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पुलिस परेशान
पुलिस है हैरान और परेशान
दृष्टिहीन कुर्सी
दे रही फ़रमान…
''जल्दी बताओ लाश किसकी है''
''नहीं पता''
''तो तुम कर क्या रहे हो ''
हुजूर किसी सेठ की
या साहूकार की लाश नहीं है।
किसी बदमाश या मक्कार
की भी नहीं लगती यह लाश।''
''तुम बेवकूफ़ हो
समझ नहीं पा रहे हो कि
यह किसी आम आदमी की लाश है।
यह आम आदमी
सबसे खतरनाक है।''
इसको कहीं छुपाओ
यह आम आदमी
हमेशा हंगामा करता है ,
जहां चाहे वहां मरता है।
यह आम आदमी
कब क्या कर बैठे
इसका कुछ भरोसा नहीं
इसे जैसे भी हो ठिकाने लगाओ
इस प्रेत से जैसे भी हो मुक्ति पाओ।
यह तुम्हारी नौकरी खा जाएगा
और हमारा तो जीवन ही लील
जाएगा।
इस आम आदमी को
यह ज़रूरी है
आज के इस आम आदमी को
काबू में रखने के लिए।''
24 जून
2007 |