| कहाँ गए कहाँ गएवे लोग
 इतने प्यार के
 पड़ गए
 हम हाथ में
 बटमार के।
 मौत बैठी
 मार करके कुण्डली
 आस की
 साँझ न जाने
 कब ढली
 भेजता पाती न मौसम
 है खुले पट
 अभी तक दृग द्वार के।
 बन गई सुधियाँ सभीरात रानी
 याद आती-
 बात बरसों पुरानी
 अब कहाँ दिन
 मान के, मनुहार के।
 गगन प्यासाधूल धरती हो गई
 हाय वह पुरवा
 कहाँ पर सो गई
 यशोधरा-सी
 इस धरा को छोड़कर
 सिद्धार्थ-से
 बादल गए
 इस बार के।
 १ जनवरी २००५  |