खड़े यहाँ पर ठूँठ
खड़े यहाँ पर ठूँठ
कभी यहाँ
पेड़ हुआ करते थे
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे।
छाया के
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार ,
मिली-भगत सब
लील गई थी
नदियाँ पानीदार
अब है सूखी झील
कभी यहाँ
पनडुब्बा तिरते थे
बदल गए हैं
मौसम सारे
खा-खा करके मार
धूल -बवण्डर
सिर पर ढोकर
हवा हुई बदकार
सूखे कुएँ ,
बावड़ी सूखी
जहाँ पानी भरते थे
२४ मई २०१० |