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अनुभूति में रामेश्वर कांबोज हिमांशु की रचनाएँ--

नए गीतों में--
कितना अच्छा होता
खड़े यहाँ पर ठूँठ
ये घर बनाने वाले

अंजुमन में—
अंगार कैसे आ गए
अधर पर मुस्कान
आजकल
इंसान की बातें
ज़िंदगी की लहर
मुस्कान तुम्हारी

हास्य व्यंग्य में—
कर्मठ गधा
कविजी पकड़े गए

पुलिस परेशान

दोहों में—
गाँव की चिट्ठी
वासंती दोहे

कविताओं में—
ज़रूरी है
बचकर रहना
बेटियों की मुस्कान
मैं घर लौटा

मुक्तकों में—
सात मुक्तक

क्षणिकाओं में—
दस क्षणिकाएँ

गीतों में—
आ भाई सूरज
आसीस अंजुरी भर
इस बस्ती मे
इस शहर में
इस सभा में
उजियारे के जीवन में

उदास छाँव
उम्र की चादर की
कहाँ गए
गाँव अपना
तुम बोना काँटे
दिन डूबा
धूप की चादर
धूप ने
लेटी है माँ

संकलन में—
नई भोर
नया उजाला

  खड़े यहाँ पर ठूँठ

खड़े यहाँ पर ठूँठ
कभी यहाँ
पेड़ हुआ करते थे
सूखी तपती
इस घाटी में कभी
झरने झरते थे।

छाया के
बैरी थे लाखों
लम्पट ठेकेदार ,
मिली-भगत सब
लील गई थी
नदियाँ पानीदार
अब है सूखी झील
कभी यहाँ
पनडुब्बा तिरते थे

बदल गए हैं
मौसम सारे
खा-खा करके मार
धूल -बवण्डर
सिर पर ढोकर
हवा हुई बदकार
सूखे कुएँ ,
बावड़ी सूखी
जहाँ पानी भरते थे

२४ मई २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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